Tuesday, November 27, 2018

आधुनिक देशभक्ति और उसकी सच्चाई

देशभक्ति एक भावनात्मक विचार जरूर है जो राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रबल करता है।

विकसित राष्ट्र किसी एक नेता, दल या विचारधारा द्वारा रातों रात पूर्ण होने वाला दिवा स्वप्न न होकर एक अनवरत प्रयास है जो दशकों तक सतत रूप से किया जाना चाहिए।

विकसित राष्ट्रों में भी भयंकर खामियाँ हैं और वह भी सम्पूर्ण नहीं हैं।

यह कुछ उस प्रकार का कथानक अपनी लिखा है की पिताजी दिन रात मेहनत कर दो रोटी का इंतजाम कर रहे हैं और वामपंथी लड़का उनके काम में सहयोग न कर उन्हें खाली बैठा उलाहने देता रहे और उदाहरण में अपने सम्पन्न पड़ोसी को प्रस्तुत करे की देखिए अमुक के पिताजी ने उसे हार्ले मोटरसाइकिल और बीटल कार दिलवाई है, घूमने के लिए इस बार स्विट्जरलैंड गए थे।

पर उदाहरण गिनाते हुए वह लड़का यह भूल जाता है की पिताजी ने उसकी नौकरी लगवाने के, काम धंधा लगवाने के सतत प्रयास किये। पर लड़के का शग़ल था की उसे एक बड़े से केबिन में बैठ कर साहब वाली नौकरी करनी है, जिसमें उसके पास नौकर चाकर सब हों, पर उसे ये भान नहीं है की काम धंधा और रोजगार उसकी काबिलियत के अनुसार ही मिल सकता है। और उसके पिताजी की इतनी हैसियत नहीं की वो उसे कोई बड़ी फैक्ट्री खुलवा कर दे सकें।

यहाँ पिताजी मतलब राष्ट्र और पुत्र मतलब निठल्ली जनता से है।

बिल्कुल मैं एक हज़ार करोड़ का स्वामी बनते ही बेहतरीन जीवन शैली जियूँगा, पर एक हजार करोड़ का स्वामी अपने प्रयासों से बनूँगा। इस जीवनशैली को जीने के लिए प्रयास करूंगा अपनर दम पर या अपने पिता का सहयोग करके।

मैं उसके बाद विदेश में भी बस सकता हूँ, पर उसके अनेकोनेक कारण है, अगर वह कारण दूर किये गए होते तो व्यक्ति बाहर की जीवनशैली के प्रति आकर्षित न होता।

1. जनसंख्या विस्फोट :- अधिक जनसंख्या के कारण यहाँ शायद उस तरह शहरों का रख रखाव संभव नहीं जो शायद कुछ विकसित कम आबादी के देशों में संभव हो।

2. मूलभूत सुविधाएं जैसे सड़क, सामुदायिक जगहें।

देश के प्रति निष्ठा और प्रेम विदेश में रहने वाले भारतीयों के मन में कहीं ज्यादा है अगर उनकी तुलना हम उम्र खालिद और कन्हैया सरीखों से करें तो।

देशभक्ति एक ऐसा भावनात्मक विचार है जिसके चलते नागरिको को ये बोल कर दबाने का प्रयास होता आया है कि वे विकसित देशो के मुकाबले कमजोर राष्ट्र के नागरिक हैं इसलिए उन्हें बेहतर जीवन शैली , जीवन सुरक्षा इत्यादि का भरोसा फिलाल नहीं दिया जा सकता। पर नागरिक होने के नाते पूर्ण निष्ठा रखें , समय पर कर चुकाते रहें।

लेकिन अक्सर पढ़े-लिखे, संपन्न नागरिक जो अच्छा कमा रहे हो , वो इन भावनात्मक जाल में नहीं फंसते और विदेशों की ओर रुख कर लेते हैं। कई तो जैसे अक्षय कुमार की भांति रोजगार यहां से लेते हैं और नागरिकता कनाडा की रखते हैं। क्यूंकि देशभक्ति का आकलन उनके नज़रिये से भिन्न होने लगता है , वो बेहतर लाइफ स्टाइल पर व्यय करने की छमता रखते हैं फिर देशभक्ति जैसे शब्दों की परवाह उनके लिए कोई मायने नहीं होती और भारत की दयनीय स्तर को कोस कर निकल लेते हैं।

मैं तो कहता हूँ जोशी जी अगर १००० करोड़ के स्वामी बने तो उनका पहला स्वप्न होगा एक आलीशान लाइफ स्टाइल जीना , इसकी पूर्ति के लिए वे इस धरा पर बेहतर से बेहतर जगह का चुनाव करेंगे और  देशभक्ति टाइप शब्दों की परवाह नहीं करेंगे। वो शायद यहाँ के नागरिक भी नहीं रहेंगे।  लगभग यही स्वप्न सभी देखते हैं।       

इसलिए देशभक्ति को में धैर्य और निष्ठा बनाये रखने हेतु समझौते शब्द की तर्ज़ पर देखता हूँ , आम नागरिको के लिए ये शब्द किसी शोषण से कम नहीं। उनके हक़ को दबाने का जरिया है 'देशभक्ति'।

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