Tuesday, November 27, 2018

लोकतंत्र : हिन्दुस्तान की एक बिवंडना

जिस तरह हर बच्चा अपने माँ बाप से पूर्णतया संतुष्ट नहीं होता उसी तरह दुनिया में कोई भी देश सम्पूर्ण नहीं होता, और किसी देश की जनता कभी संतुष्ट नहीं होती।

पर इसका मतलब यह नहीं की सड़कों पर असंतुष्टि, पड़ोसियों के समर्थन कर जाहिर की जाए।

माँ बाप से असंतुष्टि जाहिर करने के लिए चौराहे पर न उन्हें गाली दी जाती है और न पड़ोसी को अपना माँ बाप बना लिया जाता है।

दरअसल हिन्दुस्तान का लोकतंत्र अधकचरा है जो अपरिपक्व हिंदुस्तानियों के हाथ में बंदर के उस्तरे के समान है।

हिन्दुस्तान में आदमी अपने अधिकारों से भली भाँति परिचित है परंतु कर्तव्यों के प्रति विमुख।

जीवनशैली उच्च स्तर की उसी की होगी जो प्रयास करेगा। घर बैठे अधिकारों की पीपणी बजाने से कुछ नहीं होगा। जिस देश की जनता कर्जमाफी, सब्सिडी, आरक्षण, भत्ते, पेंशन इत्यादि को सहूलियत न मान कर अधिकार मान बैठे वो जनता कर्तव्यविमुख हो जाती है और कभी सुखी नहीं हो सकती।

हिन्दुस्तान ने आश्रित पैदा किये हैं, कभी नागरिकों को सक्षम बनाने का प्रयास ही नहीं किया।

और जो सक्षम बनाने का प्रयास करता है उसे लोग पसंद नहीं करते। देश ने बाबू और नौकरी करने वाले नौकर पैदा किये, उद्यमी बनाने के प्रयास नहीं किये।

इसलिए यह देश आश्रितों क् बन गया है, आश्रयदाताओं क् घोर अकाल है।

देश अपने लोगों को रोटी (रोजगार) की जुगाड़ दे पाने में सक्षम नहीं, और वह देश अपने प्रति निष्ठा की उम्मीद करे। ये बेहद घटिया किस्म का प्रोपेगंडा बनाया जा चुका है एशियाई देशो में।

देश के प्रति निष्ठा तभी होनी चाहिए जब वह आपकी समस्याओं को लेकर गंभीर हो। बेमतलब की देशभक्ति की पीपनी बजाने से नागरिक अपना ही नुक्सान कर रहे। सबसे ऊपर मानयता देना होगा कि क्या जनता खुशहाल है, जीवन शैली उच्च स्तर की हुई ? अगर नहीं तो आज के भारत और तब के भारत में कोई फर्क नहीं। उसकी जयकार करना व्यर्थ है।

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